<strong>नई दिल्ली:</strong> पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की मौत के साथ एक राजनीति युग की समाप्ति हो गयी है. इतिहास उन्हें जिन अनगिनत मकामों को हासिल करने के लिए याद करेगा उसमें से एक बेहद अहम तारीख होगी 11 मई 1998 की. ये वो तारीख है जब वाजपेयी के सपनों और हिम्मत ने देश को दुनिया के ताकतवर देशों की बराबरी पर ला खड़ा किया. राजस्थान के पोखरण में परमाणु परीक्षण कर अटल बिहारी ने दुनिया को भारत की शक्ति का एहसास कराया. उस दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री वाजपेयी किस तरह पोखरण से अच्छी खबर का इंतजार कर रहे थे इसका जिक्र अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में रक्षा, वित्त और विदेश मंत्री जशवंत सिंह ने पोखरण परीक्षण का जिक्र अपनी किताब 'ए कॉल ऑफ हॉनर' में किया है. <strong>प्रधानमंत्री निवास पर 11 मई 1998 की सुबह</strong> वे पोखरण परीक्षण के दिन की पूरी कहानी बताते हुए कहते हैं कि जब परीक्षण को अंजाम दिया जा रहा था तो वे दिल्ली स्थित प्रधानमंत्री आवास 5 रेसकोर्स रोड पर मौजूद थे. उन्होंने किताब में लिखा है, ''अंडरग्राउंड परमाणु परीक्षण का समय सुबह करीब 8:30 बजे का तय था. लेकिन हवा की दिशा ठीक नहीं होने की वजह से परीक्षण का समय टाल दिया गया. इस खबर के बाद कुछ मिनट घंटों के बराबर लग रहा था. कमरा बिल्कुल शांत था. जब तक अंतिम घोषणा नहीं की गई ऐसी ही स्थिति बनी रही.'' <strong>जानवरों की जान की भी चिंता</strong> वाजपेयी के हनुमान माने जाने वाले जसवंत सिंह अपनी किताब में लिखते हैं, ''परमाणु परीक्षण स्थल के आसपास नो एंट्री जोन के पास कुछ जानवर टहल रहे थे. जिसकी वजह से परीक्षण में दिक्कत आ रही थी. दरअसल परीक्षण का नेतृत्व कर रहे डीआरडीओ के अध्यक्ष और पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम का कहना था कि जानवरों की मौत को स्वीकार नहीं किया जा सकता है. आम तौर पर इतने बड़े मिशन में जानवरों की सुरक्षा का कोई ध्यान नहीं रखता है. लेकिन इस परीक्षण में ऐसा किया गया.'' <strong>..जब फोन की घंटी बजी</strong> वे आगे लिखते हैं ... गर्मी के उस दिन जब छाया लंबी होने लगी थी तभी के बीच प्रधानमंत्री के कमरे में रखे फोन की घंटी (हॉट लाइन) बजती है. तब प्रधानमंत्री के प्रिंसिपल सेक्रेटरी ब्रजेश मिश्रा ने फोन उठाया. उन्होंने बगैर कुछ कहे केवल फोन को सुना और उनके चेहरे का तनाव कम हो गया. उन्होंने फोन रख दिया. उसके बाद वे कमरे में बैठे लोगों की तरफ घूमे और बोले, ''परीक्षण सफलता पूर्वक संपन्न हुआ है, अपनी घड़ी की तरफ देखते हुए बोले ठीक 3 बजकर 45 मिनट पर.'' जसवंत सिंह आगे लिखते हैं कि ‘ऐसा नही कि वहां कोई जश्न या शोर-शराबा हुआ . उन्होंने आगे बढ़कर प्रधानमंत्री से हाथ मिलाते हुए बधाई थी और कहा कि आपने बहुत साहस का काम किया है अटल जी. लालकृष्ण आडवाणी इतने भावुक थे कि बिना कुछ बोले खामोशी से वाजपेयी से हाथ मिलाकर बधाई दी. उसके बाद वैज्ञानिकों की सलाह लेकर तैयार किये गये प्रधानमंत्री (वापपेयी) के बयान को अंतिम रूप दिया गया. जिसके बाद प्रधानमंत्री ने परमाणु परीक्षण की सफलता के बारे में देश और दुनिया को बताया.’ <strong>पोखरण आत्मश्लाघा या पुरूषार्थ के लिए नही</strong> ये वो फैसला था जिसके परिणाम प्रधानमंत्री के तौर पर उन्हें अच्छी तरह मालूम था, लेकिन अटल इरादों के साथ उन्होंने परमाणु परीक्षण पर अडिग रहे. अटल बिहारी वाजपेयी ने संसद में कहा था कि ‘पोखरण परीक्षण कोई आत्मश्लाघा या पुरुषार्थ के लिए नही था लेकिन हमारी नीति है कि Minimum Deterrent होना चाहिए, वो Credible भी होना चाहिए.. इसलिए ये परीक्षण किया गया. परीक्षण के बाद देश के सामने कुछ कठिनाईयां आएंगी हमको मालूम था लेकिन देश उन कठिनाइयों का सफलतापूर्वक सामना करेगा ये भी मुझे विश्वास था औऱ ऐसा ही हुआ. आर्थिक प्रतिबंध हमें आगे बढ़ने से नही रोक सके’. वाजपेयी ने संसद में जो कहा वो उनके इरादों की मजबूती के शब्द थे. परीक्षण के बाद अमेरिका समेत कई देशों ने भारत पर आर्थिक प्रतिबंध लगा दिया. लेकिन वाजपेयी उनकी दृढ़ इच्छा शक्ति ने इन परिस्थितियों में भी उन्हें अटल स्तंभ के रूप में अडिग रखा.
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अटल इरादों की उड़ान था पोखरण परीक्षण
Reviewed by Unknown
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August 16, 2018
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